पिछ्ले साल नंदाईने प्रपत्ती के बारे में जो वार्तालाप किया था वह हमने समिरदादा के ब्लाग पर पढा था। उसी पोस्ट के कुछ चुने हुए हिस्से का हिंदी अनुवाद यहा पर प्रकाशीत कर रहे है।
नंदामाताने यहां की (हॅपी होम) कुछ श्रद्धावान महिलाओं से बातचीत के दौरान कहा था...
"श्रीमंगलचण्डिका प्रपत्ती की तैयारियों की शुरुआत ही हम बापू द्वारा रामराज की किताब में प्रपत्ती के बारे में बताए अनुसार करेंगे। ताकि हम अच्छी तरह से जान सकें कि बापू को हम से क्या अपेक्षित है। हर साल प्रपत्ती से पहले अगर सभी श्रद्धावान महिलाएं यह पढेंगी तो उन्हें बापू की भूमिका अच्छी तरह से समझ में आएगी।"
......और तभी मुझे रामराज के प्रवचन की याद आई। वह दिन था ६ मई २०१०....तब परमपूज्य बापु बोले,
"अब महत्वपूर्ण बात कहता हूं और वह है श्रीचण्डिका उपासना....रामराज लाने के लिए यह चण्डिका महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इस चण्डिका की कृपा से ही सबकुछ होगा। इसकी उपासना करने से अशुभ का नाश होता है, तथा अशुभ दूर होता है और यश और पराक्रम प्राप्त होता रहता है तथा अबाधित रहता है।"
तभी परमपूज्य बापू ने पहली बार प्रपत्ती के बारे में बताया था। प्रपत्ती का सरल अर्थ है आपत्ती निवारण करनेवाली शरणागति। पुरुषों के लिए श्रीरणचण्डिका प्रपत्ती तो महिलाओं के लिए श्रीमंगलचण्डिका प्रपत्ती। पुरुषों को प्रपत्ती सावन के महीने में करनी होती है और महिलाओं को संक्रांती के दिन सूरज ढलने के बाद।
किताब में जानकारी पढने के बाद नंदामाता ने कहा था...
"जिस तरह से सप्तमातृका पूजन हम अपने बच्चों की सुरक्षा के लिए करते हैं, उसी तरह हम प्रपत्ती करते हैं संपूर्ण परिवार की सुरक्षा के लिए। हमें महिषासुरमर्दिनी चण्डिका अर्थात हमारी बडी मां हमें अपने परिवार की संरक्षक बनाती है।"
नंदामाता ने आगे कहा,
"जिस तरह बापू कहते हैं कि, विठ्ठल की वारी के लिए जाते समय मन में विठ्ठल होना चाहिए उसी तरह प्रपत्ती करते समय हम सब के मन में "अपनी बडी मां" होनी चाहिए। पूजा की सजावट करते समय, पूजा की थालियां भरते समय, आरती करते समय, फूल अर्पण करते समय, परिक्रमा करते समय हर कृति करते समय हमें मन से बडी मां के साथ होना चाहिए, इतना ही नहीं बल्कि घर पहुंचकर प्रसाद का सांबार बनाते समय, अपने परिवार के साथ बैठकर यह प्रसाद ग्रहण करते हुए यह ’बडी मां का’ प्रसाद है यह भाव प्रत्येक के मन में होना चाहिए। भगवान केवल हमारे भाव का भूखा है।"
श्रीमद्पुरूषार्थग्रंथ में भी बापू यही कहते हैं, -
- भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए पहले भगवान पर विश्वास होना चाहिए और उस पर प्रेम होना चाहिए।
- भगवान की प्रतिका की पूजा हमारे प्रेम को पवित्र तथा सुसंस्कृत तरीके से व्यक्त करने का सबसे आसान और प्राचीन मार्ग है।
- भगवान की प्रतिमा का भावपूर्ण पूजन करते समय दर्शन, पूजन, चरणस्पर्श, ध्यान और अपनापन जैसे पांच साध अपनेआप निर्माण होते हैं।
- श्रीमद्पुरूषार्थ: तृतीय: खण्ड: आनन्दसाधना , पृष्ठ क्र. ६२, पूजन (प्रतिकोपासना)
नंदामाता ने उन महिलाओं से आगे कहा था,
"सजावट एक उपचार है। बापू ने जैसे कहा है वैसे ही होना चाहिए। सजावट ऐसी आकर्षक होनी चाहिए कि उससे प्रसन्नता निर्माण हो, मगर उसका अवडंबर भी नहीं होना चाहिए। इसी के साथ साथ आज हमारी ’बडी मां’ आनेवाली है वह भी केवल हमारे लिए; मां के हाथों में शस्त्र केवल हमारे परिवार की संरक्षा के लिए हैं; वही हमें हमारे परिवार की संरक्षक बनाएगी; यह भावना, यह आर्तता हम में से प्रत्येक के मन में होनी चाहिए। हमें ’बडी मां’ से संवाद करना चाहिए। प्रेम और आर्तता से उसका नामस्मरण करना चाहिए।"
पूजन उपचार में गलती से कोई चीज रह जाए तो डरना नहीं है, इस बात पर बापू श्रीमद्पुरुषार्थ ग्रंथ में कहते हैं,
परमेश्वर सदैव प्रत्येक का स्मरण और चिंतन बिना भूले करता रहता है, इसलिए उसे भगवान का स्मरण और चिंतन करनेवाले मानव पसंद हैं। उनकी गलतियों को वह क्षमा करता है
- श्रीमद्पुरूषार्थ: प्रथम: खण्ड : पृष्ठ क्र. ६६
नंदामाता ने आगे कहा,
"प्रत्येक श्रद्धावान महिला वीरा होती है और वह उसके परिवार की संरक्षक होनी चाहिए। हम सब बडे प्रेम से ’बडी मां’ की शरण में जाएंगे और उसका कृपाशीष प्राप्त करेंगे।.....संसार और अध्यात्म दोनों में रामराज आना चाहिए। हमारा बेस्ट होना चाहिए, बेस्टेस्ट होना चाहिए।"
बापू का रामराज के बारे में कहा गया यह वाक्य मुझे याद आया। उस प्रवचन में बापू बोले थे कि, रामराज केवल मन तक सीमित न रहकर शरीर-मन-प्राण और बुद्धी इन सभी स्तरों पर रामराज आना जरुरी है।
और इस के लिए हमें बापू की कही हुई बातों पर अमल करना चाहिए। उदाहरण के तौर पर सुबह उठकर पानी पीना, रोज शताक्षी प्रसादम ग्रहण करना, कडीपत्ता खाना, सूर्यप्रकाश में चलना, फल खाना - ऐसा करने से हम बापू के साथ रामराज में जाएंगे।
- समिरसिंह दत्तोपाध्ये